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Racecourse Club,Meerut since 1879

मेरठ रेसकोर्स स्थापित 1879 सिटी रेलवे स्टेशन से कुछ ही दूरी पर सैनिक अस्पताल के ठीक बगल में रेसकोर्स स्थित है। कभी यह लाइव घुड़सवारी के लिए मशहूर था। देश के अलग-अलग शहरों से घोड़े यहां फर्राटा भरते थे। रेसकोर्स की खासियत है कि इसका ट्रैक सीध में है। देश में इस तरह का यह एक मात्र ट्रैक है, लेकिन आज घुड़सवारी यहां बीते दिनों की बात हो गई है। सभी बुनियादी सुविधाएं जस की तस हैं, लेकिन घोड़े नहीं दौड़ते। हां, यहां बेंगलुरू जैसे शहरों में होने वाले लाइव शो का प्रसारण होता है और उसी पर बेटिंग लगती है। रेसकोर्स की यादें आज भी लोगों के जेहन में हैं। 141 साल पहले बना क्लब रेसकोर्स क्लब ऐतिहासिक है। 141 साल पहले चार्सली थॉमस नाम के अंग्रेज से इसे बनवाया था। 22 एकड़ से अधिक जगह में फैले इस रेस क्लब में 2.8 किमी. का सकरुलर ट्रैक है। यह देशभर में चल रहे नौ रेस क्लबों में एक मात्र रेस क्लब है, जिसमें एक हजार मीटर का सीधा कोर्स यानी ट्रैक है। हालांकि इसमें फिनिस प्वाइंट से पहले केवल छह सौ मीटर सीधे ट्रैक का ही रेस में इस्तेमाल हुआ है। सीधे ट्रैक को स्ट्रेट रेस आयोजित करने के लिए बनाया गया था, लेकिन ऐसा कभी हुआ नहीं। ट्रैक पर नहीं होता जलभराव छावनी में बने इस रेस क्लब में बनाया गया ट्रैक विशेष डिजाइन से तैयार किया है। खास बात यह है कि ट्रैक पर बारिश का पानी नहीं भरता। पानी ट्रैक के समानांतर बने नाले में जाता है और वहां से बाहर निकल जाता है। बीच में आर्मी गोल्फ क्लब (अब, आर्मी एनवायरमेंटल पार्क एंड ट्रेनिंग एरिया, मेरठ) स्थित है। रेस क्लब में घोड़ों की रेस प्रतियोगिताओं में सम्मानित ‘वाइसरॉय कप’ का भी आयोजन हुआ था। मसूरी में रहने वाले जाने-माने ब्रिटिश लेखक रस्किन बांड इस क्लब में आते थे। 1945 तक हुई मीट रेस वर्ष 1945 से पूर्व तक मेरठ रेस क्लब में मीट रेस होती थी। स्वतंत्रता के बाद यहां केवल जिमखाना रेस ही आयोजित की जाती रहीं। वर्ष 2005 में लाइव टेलीकास्ट की व्यवस्था शुरू होने के बाद इंटरवेन्यू रेस होने लगी। यह रेस आरडब्ल्यूआइटीसी मुंबई के सहयोग से होती थी। मुंबई, पुणो, बेंगलुरु, मैसूर, हैदराबाद, कोलकाता और दिल्ली रेस क्लबों की रेस यहां लाइव दिखाई जाती है। मेरठ और लखनऊ रेस क्लबों में जिमखाना रेस आयोजित होती रही। सेना ने नहीं बदलने दी तस्वीर सेना की जमीन पर स्थित इस क्लब में रेस बंद होने के बाद अब इसके रखरखाव की जिम्मेदारी सब एरिया के अंतर्गत सेना ने अपने हाथ में ले ली है। भवन के भीतर जर्जर अवस्था को पूरी तरह से ठीक करते हुए इसकी समय-समय पर मरम्मत कराई जाती है। घोड़ों की बीमारी ने बंद कराई रेस मेरठ रेस क्लब में साल 2014 तक जिमखाना रेस आयोजित हुई। इससे कुछ साल पहले से ही मेरठ शहर के आसपास के क्षेत्रों में स्टड फार्म घटने लगे और घोड़ों की संख्या भी कम होने लगी। इसके साथ ही घोड़ों में ‘ग्लैंडर्स’ नामक बीमारी को देखते हुए रेस को बंद कर दिया गया। घोड़े वाली बिल्डिंग के नाम से मशहूर कभी रेस क्लब के पास 80 घोड़े और करीब 85 अस्तबल हुआ करते थे। अस्तबल के अलावा घोड़ों को ओल्ड ग्रांट बंगलों और व्हीलर्स क्लब में भी रखा जाता था। सैकड़ों की संख्या में घोड़े रेस में हिस्सा लेते थे। अंग्रेज अफसर व नागरिक रेस देखने के साथ ही घोड़ों पर दांव लगाया करते थे। वर्ष 1943 तक बड़े पैमाने पर मीट रेस आयोजित होती थी। रेस देखने वालों की संख्या भी काफी देखने को मिलती थी। लाइव रेस में जुटती है भीड़ देश के सात रेस क्लबों में जो रेस होती है, उसे अब यहां लाइव प्रसारण के जरिए दिखाया जाता है। जब भी रेस होती है, काफी संख्या में शहरवासी रेस देखने आते हैं और इन्हीं में से कुछ दांव भी लगाते हैं। यह लाइव रेस मुंबई क्लब की देखरेख में आयोजित की जाती है। अब भी होती है मनोरंजन रेस मेरठ रेस क्लब के पास अब भी कुछ घोड़े हैं। इन घोड़ों का इस्तेमाल कभी-कभार मनोरंजन रेस के लिए किया जाता है। इसमें स्कूली बच्चे भी बुलाए जाते हैं।



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