रसूलपुर धोलड़ी,मेरठ.
रसूलपुर धोलड़ी,मेरठ.
मुग़लों के भारत आगमन के पश्चात ही आस पास के मुस्लिम क्षेत्रों से लोग व्यापार या विस्थापन के लिए भारत की ओर आने लगे। शाहजहां के दौर में खैबर और अफ़ग़ानिस्तान के इलाकों से सय्यद काज़मी के परिवारों ने पंजाब की ओर हिजरत की और भारत आ गए। इतिहास बताता है कि सबसे पहले वह मेरठ शहर के पास बरनावा गाँव पहुंचे। यह लोग वहां आबाद हो गए। समय बीता और परिवार बड़ा होता गया। सय्यद काज़मी परिवार के सय्यद शहाबुद्दीन पहली बार , लगभग 400 साल पहले रसूलपुर धौलड़ी आये। तब यह राजपूत बहुल गाँव हुआ करता था। गाँव के माहौल को मुनासिब पा कर सय्यद काज़मी परिवार यहाँ स्थापित हो गए। सबसे पहले सय्यद शहाबुद्दीन ने यहाँ दो इमारतों का निर्माण कराया। दीवान खाना और महल। स्थानीय लोगों के अनुसार दीवान खान परिवार के पुरुषों के रहने के लिए था और महल परिवार की महिलाओं के लिए। दीवान खाना के पास सुरंग बनी हुई थी जो महल और दीवान खाना को एक तयखाने से जोड़ती थी जोकि आज के समय में उपयोग में नहीं है। सय्यद शहाबुद्दीन उस दौर में रियासत के सेनापति हुआ करते थे। इसीलिए यह दीवान खाना जहाँ एक तरफ उनका निवास था वहीँ उनका कार्यालय भी था। सामाजिक, राजनैतिक और धार्मिक समारोहों का आयोजन यहीं हुआ करता था। उन्हीं का परिवार यहाँ बढ़ता गया।
सय्यद शहाबुद्दीन का सम्बन्ध शिया मुस्लिम समुदाय से था इसीलिए मुहर्रम और अज़ादारी का एहतेमाम उनके द्वारा किया जाता था। शुरू में यहाँ कोई इमाम बारगाह नहीं थी। स्थानीय लोगों ने बताया कि पहले मुहर्रम का कार्यक्रम दीवान खाना और सय्यद अली गोहर साहब के घर में होता था फिर जब लोग बढ़ते गए और घर छोटा पड़ने लगा तो सय्यद अली गोहर के पुत्र सय्यद अली कबीर साहब ने यहाँ एक इमाम बाड़ा बनवाया। सय्यद अली कबीर साहब बे औलाद थे तो उन्होंने अपनी सारी संपत्ति लोगों के भले के लिए दान कर दी। बच्चों की पढ़ाई लिखाई और क़ौम की विधवाओं का खर्च उनके बनाये गए ट्रस्ट से चलने लगा । आज के समय में इस इमाम बारगाह में 2000 - 2500 लोगों मुहर्रम के समय शामिल होते हैं। इस इमाम बारगाह के अलावा गाँव में लगभग 8 और इमाम बरगाहें हैं।
इसके अलावा गाँव में एक ईदगाह भी है, जिसके बिलुल बराबर में ही कर्बला मौजूद है। मुहर्रम का आयोजन महल से शुरू होता है और कर्बला पर आ कर समाप्त होता है। अंजुमन हुसैनिया इंतेज़ामिया ट्रस्ट के अंतर्गत इस कर्बला की देखरेख की जाती है। ट्रस्ट के नायब सेकेरेट्री सय्यद नाज़िर हसन ने बताया की ट्रस्ट के पास लगभग 55 बीघा ज़मीन है। जिसमे से 20 बीघा में बाग़ है और कुछ क्वार्टर्स भी बने हुए हैं।
इमाम बारगाह के बिलकुल बराबर में रसूलपुर धौलड़ी को बसाने वाले सय्यद शहाबुद्दीन साहब के घराने का एक विशेष क़ब्रिस्तान भी मौजूद है जोकि दरगाह के नाम से जाना जाता है।
स्टूडियो धर्मा को इस नायाब जगह का सफर कराने वाले दायम काज़मी, सय्यद नाज़िर हसन, शौकत काज़मी, हसन अब्बास काज़मी इत्यादि का हम दिल से आभार व्यक्त करते हैं।
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