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ॐ नमः पार्वती पतये हर हर महादेव - महाशिवरात्रि .

ॐ नमः पार्वती पतये हर हर महादेव - महाशिवरात्रि . श्रावण मास की शुरुआत होते ही भगवान भोलेनाथ के भक्त चल देते हैं अपने आराध्य देव को मनाने। हर तरफ ‘बम भोले’, ‘हर-हर महादेव’, ‘ऊँ नम: शिवाय’ का जयकारों का उद्घोष लगने लगते हैं। भगवा रंग के वस्त्र धारण करे ये भोले भक्तों की अपने आराध्य के प्रति दीवानगी देख हर कोई दंग हो जाता है। मीलों का सफर तय करने के लिए ये भोले भक्त कई दिन पहले ही अपना घर छोड़ देतें हैं। उत्तर भारत में श्रावण के महीने का उत्साह तो कुछ अलग ही देखने को मिलता है। अगर आप उत्तर भारत के रहने वाले हैं तो आपको अपने शहर के मुख्य मार्गों पर शिवभक्तों द्वारा सुंदर व आकर्षक तरीके से शिव परिवार व समस्त देवी-देवताओं की प्रतिमाओं से सजी हुई सुंदर झांकियाँ देखने को मिल जाती हैं। इतनी सुंदर झांकियाँ की आप अपनी नजरें किसी दूसरी तरफ घूमा ही न पाएँ। इन्हें देखने के लिए सड़कों पर लोगों का तांता लगा रहता है। श्रावण की चतुर्दशी के दिन उस गंगा जल से अपने निवास के आसपास शिव मंदिरों में शिव का अभिषेक किया जाता है। ज्यादातर लोग गौमुख, इलाहबाद, हरिद्वार और गंगोत्री जैसे तीर्थस्थलों से गंगाजल भरते हैं, इसके बाद पैदल यात्रा कर शिवलिंग पर चढ़ाते हैं। भगवान भोलेनाथ के इस अतिप्रिय श्रावण मास में गंगा स्नान और सोमवार व्रत का भी अधिक महत्व है। एक कथा है कि राजा दक्ष की पुत्री माता सती ने अपने जीवन को त्यागकर कई हजार साल तक एक श्रापित जीवन जीया। उसके बाद उन्होंने हिमालय राज के घर में माता पार्वती के रूप में जन्म लिया। माता पार्वती ने भगवान शिव को अपनी पति के रूप में पाने के लिए सावन के महीने में बहुत तपस्या की, जिससे भगवान शिव अति प्रसन्न हुए और उन्होंने माता पार्वती को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया। ऐसी मान्यता यह भी है कि जो व्यक्ति इस माह में सभी सोमवार के व्रत रखता है, तो भगवान शिव उसकी सभी इच्छाएँ पूरी करती हैं। इस माह में श्रध्दालु कई ज्योर्तिलिंगों के दर्शन भी करते हैं। कहते हैं कि जब भगवान श्री हरि विष्णु चार माह के लिए शयन मुद्रा में चले जाते हैं तो भगवान शिव समस्त विश्व का कल्याण करते हैं। इस माह में ग्रीष्म ऋतु के बाद वर्षा ऋतु की छटा देखने को मिलती है। मानो प्रकृति को किसी ने हरे रंग में उकेर दिया हो। कांवड़ यात्रा की शुरूआत किसने की? इस सवाल के अलग-अलग जवाब आपको सुनने को मिले होंगे। कुछ प्रचलित पौराणिक धार्मिक कथाएँ ऐसी हैं जिनके बारे में आपने सुना ही होगा। हिंदू पौराणिक धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान शिव ने समुद्र मंथन से निकला हलाहल विष पीया था। जिससे उनका कंठ नीला हो गया। इस दौरान, सभी देवताओं ने भगवान शिव पर कई पवित्र नदियों का जल अर्पित किया। सभी देवताओं ने उस विष के तप को कम करने भी गंगाजल चढ़ाया। इसी कारण श्रावण मास में भगवान शिव का जलाभिषेक किया जाने लगा। कुछ धार्मिक कथाओं के अनुसार, भगवान परशुराम ने कावड़ यात्रा की शुरुआत की थी। भगवान परशुराम ने ही उत्तर प्रदेश के बागपत जिले में सैंकड़ों वर्षों से लोगों की आस्था का केंद्र, परशुरामेश्वर जिसे पुरा महादेव के नाम से भी जाना जाता है, का कांवड़ से गंगाजल लाकर अभिषेक किया गया था। गढ़मुक्तेश्वर से गंगाजल लेकर आए भगवान परशुराम ने इस प्राचीन शिवलिंग का जलाभिषेक किया था। तभी से यह परंपरा आज तक जारी है। गढ़मुक्तेश्वर, जो अब ब्रजघाट के नाम से जाना जाता है, से बहुत से लोग गंगाजल लाकर पूरे महादेव को जलाभिषेक करते हैं। कुछ प्रचलित धार्मिक मान्यताएं कांवड़ यात्रा की शुरूआत को भगवान श्रीराम के समय से बताती हैं। मर्यादा पुरुषोत्तम ने बिहार राज्य के सुल्तानगंज से अपने कांवड़ में गंगाजल भरकर बाबा धाम के शिवलिंग का जलाभिषेक किया था। यहीं से कांवड़ यात्रा की शुरुआत मानी जाती है। वहीं कुछ लोगों का मानना है कि सबसे पहले त्रेतायुग में श्रवण कुमार ने कांवड़ यात्रा की थी। जब श्रवण कुमार अपने नेत्रहीन माता-पिता को तीर्थ यात्रा करा रहे थे, तब उनके माता-पिता ने मायापुरी यानी हरिद्वार में गंगा स्नान करने की इच्छा जाहिर की थी। अपने माता-पिता की इस इच्छा को पूरा करने के लिए श्रवण कुमार ने अपने माता पिता को कांवड़ में बैठा कर हरिद्वार में गंगा स्नान कराया और वापस जाते समय गंगाजल लेकर गए यहीं से कांवड़ यात्रा की शुरुआत मानी जाती है। परशुराम भगवान के समय में शुरू हुई कांवड़ यात्रा पैदल ही निकाली जाती थी, लेकिन समय और सहूलियत के अनुसार आगे चलकर कांवड़ यात्रा के कई प्रकार और नियम कायदे बन गए। मान्यता है कि कांवड़ यात्रा के नियम बेहद सख्त हैं जो व्यक्ति इन नियमों का पालन नहीं करते हैं उनकी यात्रा अधूरी मानी जाती है। इसके अलावा उन्हें कई तरह की परेशानियों का सामना भी करना पड़ता है। कांवड़ यात्रा के दौरान किसी भी तरह का नशा करना वर्जित माना गया है। इसके अलावा मांसहारी भोजन करने की भी मनाही है। यात्रा के दौरान कांवड को जमीन पर नहीं रखना चाहिए। अगर आपको कही रुकना हैं तो स्टैंड या पेड़ के ऊंचे स्थल पर रखें। कहते हैं अगर किसी व्यक्ति ने कांवड़ को नीचे रखा तो उसे दोबारा गंगाजल भरकर यात्रा शुरू करनी पड़ती है। कांवड़ यात्रा के दौरान पैदल चलने का विधान है। अगर आप कोई मन्नत पूरी होने पर यात्रा कर रहे हैं तो उसी मन्नत के हिसाब से यात्रा करें। भोले बाबा का आशीर्वाद आपको मिले उनकी दुआ का प्रसाद आपको मिले आप करें जिंदगी में इतनी तरक्की हर किसी का प्यार आपको मिले महाशिवरात्रि की हार्दिक । ।

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