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वहलना किला, मुजफ्फरनगर.

वहलना किला, मुजफ्फरनगर. मुजफ्फरनगर के गांव वहलना में इतिहास का एक ऐसा मोती है जिसकी कद्र ओ कीमत का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता तो तुरंत हमने वहलना का सफर शुरू कर दिया। वहलना बेहद खुबसूरत गांव मालूम हुआ। गांव के बीचों बीच मौजूद थे एक शानदार किले का दरवाजा। यह दरवाजा ही अपने आप में नायाब है। इसकी बनावट जितनी ऊंची है उतनी ही गहरी। लाखों ईंटों के भंडार को इस सलीके से लगाया गया है कि 400 साल बाद भी इसने अपना रूप नही खोया। इसके बड़े बड़े विशालकाय दरवाजे उस समय की शंशाही का प्रमाण है। अदभुत बात यह है कि इसे बनाने के लिए बेहद उम्दा किस्म की लकड़ी पत्थर और लोहे का इस्तेमाल किया गया है। तभी वक्त के साथ यह आज तक जीवित हैं। इमारत मुगल शैली में ही बनी है। गुम्बद और मेहराब नुमा आकार दखने को मिलते है। काफी नुकसान होने के बावजूद किले में अपना रूप नही खोया है। आज भी इसकी ऊंचाई गांव में किसी भी और इमारत से ज्यादा है। लगभग 65- 70 ft ऊंचे दरवाजे से पूरा गांव नजर आता है। वहलना गांव को बसाने वाले सय्यद यूसुफ बहरा थे। इनका मुगल दरबार से ताल्लुक हुआ करता था। इनके पोते सय्यद फिरोज अली बहरा ने ही इसका निर्माण कराया था। सय्यद फिरोज शाहजहां के दौर में सेना पति थे। कई मुहीमों में शहजादे औरंगजेब और दारा शिकोह के साथ शामिल हुए थे। 39 बीघे में मौजूद यह संरचना पहले एक दीवारबंद एक किला था जिसमे दीवान खाना और महल मौजूद थे। लेकिन समय में साथ साथ यह रहने वाले लोगों ने संरचना को बदला और नया करते करते पुरानी को हटा दिया। अंदर फिलहाल 40 50 परिवार रहते हैं। कुछ घरों में अब भी पुरानी संरचनाएं मौजूद है। अंदर एक इमाम बारगाह भी है।यह भी उसी वक्त की है लेकिन यह धार्मिक आयोजन के लिए एक अहम स्थल है इसी लिए इसे समय समय पर बदला जाता रहा है। पास ही में एक मस्जिद भी मौजूद है।स्थानीय लोगों ने बताया कि यह भी उसी समय की मस्जिद है। इसके अलावा हमने सय्यद हुसैन और सय्यद यूसुफ के मकबरे की भी जियारत की । गांव के एक कोने में प्रकृति को गोद में यह आराम फरमा रहे है। दोनो की कब्र अंदर है जबकि बाहर उनके खिदमत करने वालो की कब्र मौजूद है।

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