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सूरजकुंड पार्क ,मेरठ.

सूरजकुंड पार्क ,मेरठ. सूरज कुंड के नाम से ही ज़ाहिर है कि इसका सम्बन्ध सूर्य से है। यहां पहले सूरजकुंड नामक विशाल सरोवर हुआ करता था। ऐसी मान्यता है कि महाभारत काल में दानवीर महाराजा कर्ण ने देवराज इन्द्र को यहीं अपने कवच-कुण्डल दान किये थे, जब इंद्र भगवा नने ब्राह्मण का वेष धारण किया हुआ था। कहते हैं एक बार कुन्ती राज परिवार सहित यहां भ्रमण पर आई तो सूरज कुण्ड की महिमा में लीन हो गयीं। उगते हुए सूर्य को देखकर उन्होंने सूर्यदेव का स्मरण किया। सूर्य देव ने तुरन्त प्रकट होकर उन्हें पुत्रवती होने का आशीर्वाद दिया। आगे चलकर यह पुत्र कर्ण के नाम से विख्यात हुआ। सदियों से इस कुंड का इतिहास बदलता रहा है। रामायण काल के समय जब मंदोदरी ने सूरजकुण्ड की विशेषताएं देखीं तो इसका जीर्णोद्धार एवं संरक्षण कराया। यहीं पर एक शिवलिंग की स्थापना भी की गई। उस छोटे से मंदिर को आज भी मंदोदरी का मंदिर कहा जाता है। यह सती मंदिर के समीप स्थित है। किवदन्ती है कि रावण से युद्ध के दौरान व्यथित राम को अगस्त्य मुनि ने आदित्य हृदय स्तोत्र की दीक्षा यहीं दी थी। । सूर्य कुण्ड की एक विशेषता ये हैं की 22 जून को जब सूर्य दक्षिणायन होते हैं तो वह पहले तालाब के ठीक उत्तरपूर्वी (NE)कोने में दिखाई देते हैं और फिर धीरे धीरे दक्षिण की ओर दिखाई देने लगते हैं सूरज कुण्ड भारत के विशिष्ट सरोवरों में गिना जाता था। सिक्ख धर्म के आदि गुरु श्री नानक देव जी के सुपुत्र एवं उदासीन सम्प्रदाय के संस्थापक श्री चन्द भी सूरज कुंड पर पधारे थे। उनके विश्राम स्थल पर 1937 में एक गुरुद्वारा स्थापित किया गया, जो सूरज कुंड पार्क के एक कोने पर आज भी उस समय की कहानी को दोहरा रहा है। गुरुवाणी के पाठ के स्वर गूंजकर आगुन्तकों को अभिभूत करते हैं। अंग्रेजी हुकूमत के दौर में सूरजकुंड अंग्रेज़ों के घूमने के लिए प्रिय स्थान था । वन क्षेत्र एवं एकान्त में होने के कारण यहां अनेक छोटे जंगली जीव-जन्तु बहुतायत में पाये जाते थे, लेकिन बंदरों की अत्यधिक भरमार थी अतः अंग्रेज इसे मंकी टैंक यानी बंदरों वाला तालाब भी कहते थे। पुरातनकाल का सूरजकुण्ड सरोवर भले ही समय के साथ पानी सूख जाने के कारण सूरज कुण्ड पार्क का रूप धारण कर चुका है लेकिन यह स्थान मेरठ के इतिहास का गवाह भी है। बड़े-बुजुर्ग बताते रहे हैं कि यहां सरोवर में मछलियां तैरती थीं। यहाँ रामलीलाओं का जीवन्त मंचन होता था। कुंड में नाव चलती थी जिसमें लोग सैर करते थे। यह कुण्ड भारत के विशिष्ट पवित्र कुंडों में गिना जाता था। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान क्रान्तिकारी अंग्रेजी सेनाओं से बचने के लिये इस स्थल पर शरण लेते थे। उस समय यहां पीपल, बरगद, सेमल, कचनार, आम के पेड़ थे जो शताब्दियों पुराने थे। सरोवर के चारों ओर सीढ़ीनुमा पैड़ियां थीं, जिस पर लोग घंटों बैठकर प्राकृतिक वातावरण में सुकून के पल बिताते थे। नगर निगम और मेरठ विकास प्राधिकरण के संयुक्त प्रयास से सूरज कुण्ड पार्क बन गया। पार्क के मध्य में युग पुरुष स्वामी विवेकानंद की जन्मशती 12 जनवरी सन् 2013 में उनकी आदमकद मूर्ति लगायी गयी जो स्वामी जी के आदर्शों की प्रेरणा जन-जन को देती प्रतीत होती है। पार्क के एक छोर पर मराठाओं के समय का ऐतिहासिक मंदिर है जहां महाराणा प्रताप आ कर ठहरे थे। पश्चिम दिशा में एक छोटे से पार्क में श्वेत संगमरमर की गौतम बुद्ध की सुन्दर प्रतिमा है। पहले शहर की आबादी इतनी नहीं थी, पार्क के चारों ओर जंगल था। आस-पास का क्षेत्र पूरा हरा-भरा था। इसके सामने गांधी आश्रम और आर्य समाज मन्दिर था, जो आज भी है। तमाम संस्कारों के तहत पूजा अर्चना के धार्मिक आयोजन यहाँ होते रहे। रामायण से लेकर आज तक इस स्थान पर लोगों की आवाजाही है। बच्चों के खेलने के लिए , बुज़ुर्गों के बैठने के लिए शांत वातावरण और परिवार के साथ समय गुज़ारने के लिए यह एक सुगम स्थान है। तरह तरह के पेड़ पौधे और फूल यहाँ की शोभा बढ़ाएं हुए हैं। सूरज कुण्ड पार्क,मेरठ शुद्ध वातावरण, तपस्थली,वैदिक ऋचाओं की स्वर लहरियों से तरंगित वायु-मंडल,जंगली जड़ी बूटियों,सूर्य की किरणों एवं जल के स्रोत का प्रभाव था कि इस कुंड के जल से चर्म रोग,कुष्ठ रोग इत्यादि भी ठीक होते थे । लाल जवाहर मल (कोई सूरज मल बताते हैं)ने सन 1700 (कही 1714) में इस तालाब का विस्तार एवं जीर्णोद्धार कराया। सन 1865 में अंग्रेज़ों ने इसे नगर पालिका को सौंप दिया।

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