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हौज़ ए शम्सी | शम्सी तालाब - महरौली,दिल्ली.

हौज़ ए शम्सी | शम्सी तालाब - महरौली,दिल्ली. साल 1211 में ग़ुलाम वंश का दूसरा शासक सुल्तान इल्तुतमिश शाही तख़्त पर विराजमान हुआ। इल्तुतमिश एक नामवर राजा रहा। हालाँकि वह एक गुलाम तुर्क था लेकिन ग़ुलामी से लेकर सलतनत के बादशाह बनने तक का सफर काफी रोचक रहा जिसके बारे में किसी और दिन चर्चा करेंगे। उन दिनों राजधानी मेहरौली में हुआ करती थी। मेहरौली दिल्ली का वह हिस्सा है जो ज़रा ऊँचाई पर है इसी वजह से यहाँ पानी की काफी कमी थी। पीने के पानी के लिए एक लम्बा सफर तय करना पड़ता था इससे न सिर्फ आम जनता बल्कि शाही दरबार को भी परेशानी होती थी। इस बीच काफी उपाय सुझाए गए और उपयोग में लाये गए। फिर एक दिन सुल्तान इल्तुतमिश ने ख्वाब देखा कि पैग़म्बर मुहम्मद साहब अपने घोड़े पर सवार आसमान से उतरे है और जिस जगह उस घोड़े के पैर पड़े वहां से पानी निकलने लगा। ख्वाब से इल्तुतमिश जागा तो बहुत आश्चर्य में था। उस समय दिल्ली में सबसे बड़े सूफी ख्वाजा बख्तियारुद्दीन काकी साहब हुआ करते थे।उस दौर में हर आम और ख़ास आदमी इनको बहुत मानता था। इल्तुतमिश बख्तियारुद्दीन काकी साहब के पास पहुंचा और अपना ख्वाब सुनाया। ख्वाजा बख्तियरउद्दीन काकी साहब ने इल्तुतमिश को उसी जगह पर ले जाने का कहा जो उसने ख्वाब में देखी थी। उन्होंने इल्तुतमिश को आदेश दिया कि इस जगह की खुदाई कराई जाए। जब इल्तुतमिश ने वहां खुदाई कराइ तो वहां से साफ़ पानी का स्रोता निकल पड़ा। अपने ख्वाब, पैग़म्बर मुहम्मद की मौजूदगी और ख्वाजा बख्तियरूद्दिन काकी साहब के आदेश की वजह से इल्तुतमिश ने इस जगह को पवित्र माना और जिस जगह उसने सपने में पैग़म्बर साहब के घोड़े को उतरते हुए देखा था वही उसने एक दो मंज़िला ईमारत बनाई जहाँ बारह पिलर के सहारे ये गुम्बंद नुमा ईमारत बनवायी। इसको बनाने के लिए लाल बलुआ के पत्थर का उपयोग किया गया है। इस गुम्बद के नीचे ही वह जगह है जहाँ पैग़म्बर साहब का घोडा उतरा था। यह माना जाता है यहाँ पहले वह पत्थर मौजूद था जिस पर घोड़े के पैरों के निशान थे लेकिन बाद में उसको हटा लिया गया। ओरिजनल पीस इस समय कहाँ है इस बारे मैं स्टूडियो धर्मा कोई जानकर नहीं मिल सकी ।इल्तुतमिश का पूरा नाम शम्सुद्दीन इल्तुतमिश था इसी वजह से इस तालाब का नाम पड़ा हौज़ ऐ शम्सी या शम्सी तालाब। उस समय शम्सी तालाब के बीचो बीच यह संरचना हुआ करती थी जहाँ पहुँचने के लिए नाव का इस्तेमाल किया जाता था। यह माना जाता है कि उस समय यह तालाब लगभग 2 हेक्टेयर यानी लगभग 5 एकड़ में फैला हुआ था । लेकिन बढ़ती हुई आबाद और अतिक्रमण के कारण यह अब पूरब की ओर सिमट के रह गया है । लोदी वंश द्वारा तालाब के किनारे जहाज़ महल ही बनवाया गया था जो मुसाफिरों के ठहरने के लिए एक सराय के रूप में इस्तेमाल होता था। अंग्रेजी दौर और उसके बाद आज़ाद भारत में इस तालाब पर कोई ध्यान नहीं दिया गया। कूड़ा फेंकने से शुरू हो कर यह तालाब धीरे धीरे सीवर टैंक में तब्दील होने लगा था। आस पास का गन्दा पानी इसमें ही छोड़ा जाता था। फिर माननीय कोर्ट ने इस मामले में संज्ञान लिया और एक ऐतिहासिक धरोहर के पुनःनिर्माण और जीर्णोद्धार के लिए आदेश दिए। यहाँ लगे बोर्ड से स्टूडियो धर्मा को पता चला की इंडसइंड बैंक भी इसके जीर्णोद्धार में भागेदारी है।

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