Religious Marvels

आज मेरे गुरु और मेरे सबसे आदरणीय आचार्य 108 श्री सौरभ सागर जी महाराज के आगमन ने मेरे जीवन को वास्तविक आशीर्वादित बना दिया। मुझे अत्यधिक उत्साह और खुशी हो रही है कि उन्होंने हमारे आवास पर अपनी दिव्य उपस्थिति दर्शाई। मेरे और मेरे परिवार पर हमेशा उनका आशीर्वाद बरसता रहें। आचार्य श्री का जीवन परिचय पर

आज मेरे गुरु और मेरे सबसे आदरणीय आचार्य 108 श्री सौरभ सागर जी महाराज के आगमन ने मेरे जीवन को वास्तविक आशीर्वादित बना दिया। मुझे अत्यधिक उत्साह और खुशी हो रही है कि उन्होंने हमारे आवास पर अपनी दिव्य उपस्थिति दर्शाई। मेरे और मेरे परिवार पर हमेशा उनका आशीर्वाद बरसता रहें। आचार्य श्री का जीवन परिचय परम पूज्य संस्कार प्रणेता आचार्य श्री 108 सौरभ सागर जी महाराज का जन्म 22अक्टूबर 1970 को छत्तीसगढ़ (तत्कालीन म.प्र.) के जसपुर नगर में हुआ था। आपका बचपन मे नाम सुरेंद्र था। आपके पिताजी वरिष्ठ समाजसेवी एवं बड़े व्यापारी श्री श्रीपाल जी पाटनी (जैन) है। आपकी पूज्य माता जी कुशल गृहणी, अलौकिक संत को जन्म देने वाली माँ चंदप्रभा है। ऐसे बने सुरेंद्र से सौरभ सागर जब सुरेंद्र मात्र 12 वर्ष के थे तभी उनके नगर जसपुर में आचार्य पुष्पदंत सागर जी का आगमन हुआ। पूज्य आचार्य श्री प्रतिदिन प्रवचन से पूर्व नम: श्री वर्धमानाय………. मंगलाचरण किया करते है और यह मंगलाचरण बालक सुरेंद्र को याद हो गया। एक दिन आचार्य श्री ने देखा की एक छोटा सा बालक मंगलाचरण को याद करके बोल रहा है उसे अपने पास बुलाया और पूछा कि तुम्हे ये कठिन सा मंगलाचरण कैसे याद हुआ तब बालक सुरेंद्र ने कहा की आप प्रतिदिन बोलते हो तो मैंने सुनकर याद कर लिया। आचार्य पुष्पदन्त जी गुरुदेव ने अपनी दिव्य और दूर दृष्टि से देखा कि यह बालक आगे चलकर जैन धर्म की पताका को उचाईयों तक ले जाएगा। और तुरंत मा चंदप्रभा ओर पिता श्रीपाल जी को बुलाया को उनसे उनका प्रिय पुत्र मांग लिया। माता पिता ने भी आचार्य श्री के हाथों में अपने प्रिय पुत्र को सौंप दिया, ओर 08 अप्रेल सन 1983 को बालक सुरेंद्र ने गृह त्याग दिया। उस समय बालक सुरेंद्र की आयु मात्र 12 वर्ष 6 महीने की थी। सुरेंद्र ने गुरुदेव के साथ ब्रह्चर्य व्रत को ग्रहण किया और 17 जनवरी सन 1986 को मात्र साढ़े पंद्रह वर्ष की आयु में छतरपुर नगर में क्षुल्लक दीक्षा आचार्य श्री ने प्रदान की, आपकी बढ़ती साधना एवं ज्ञान से राजस्थान की पावन धरा बागड़ प्रांत के बांसवाड़ा जिले के अंदेश्वर नामक पार्श्वनाथ अतिशय क्षेत्र मे 27 जून 1986 को ऐल्लक दीक्षा ग्रहण कर की । सतत आठ वर्ष की कड़ी साधना के द्वारा जिनागम के रहस्यों को जानने, समझने एवं ह्रदय मे उतार गुरु आशीष की छाया में अपनी प्रतिभा को निखारा। अंतत: 21 सितंबर 1994 को उत्तरप्रदेश की धर्म नगरी इटावा मे आचार्य श्री ने आपको मुनि दीक्षा दी। आचार्य श्री अपने ज्ञान- ध्यानी, सोम्य, शांत, मुनि को देखकर प्रसन्नचित रहते और अपने ही साथ उत्तरप्रदेश से नेपाल तक की यात्रा कराई,तदुपरान्त उन्होने 21 मई 1995 को यू.पी. के बाराबंकी नामक शहर से मंगलमय भरपूर आशीर्वाद प्रदान कर स्वतंत्र धर्म प्रभावना हेतु विदा किया। आपने धर्म प्रभावनार्थ मई-जून की भीषण गर्मी मे बांदा की और विहार किया और अपनी सूझबूझ से चारित्रिक निर्मलता से दो वर्ष की अल्पावधि मे ही बहूचर्चित हो गए।आपने विश्व इतिहास की प्रथम घटना बांदा , शिवपुरी, आगरा, अलीगढ़, ग्वालियर, इलाहबाद, रोहतक आदि जेल मे मंगल प्रवचन किए एवं हजारों कैदियो को मांस, अंडा, शराब आदि का त्याग कराया । मुरादनगर गंग नहर के किनारे जीवन आशा हॉस्पिटल का निर्माण भी पूज्य गुरूदेव की प्रेरणा से सौरभ सागर सेवा संस्थान के अध्यक्ष जम्बू प्रसाद जैन ने बताया कि पूज्य गुरुदेव ने मानव सेवा के लिए ‘जीवन आशा हॉस्पिटल’ का निर्माण गाजियाबाद जिले के गंगनहर पर करवाया है। 20 एकड़ से भी अधिक क्षेत्रफल में यह हॉस्पिटल स्थापित है जहां दिव्यांग व्यक्ति के लिए निशुल्क कृत्रिम अंग लगाए जाते है। साथ ही साथ अनेक प्रकार की चिकित्सीय सुविधाएं भी नि:शुल्क प्रदान की जाती है। जीवन आशा हॉस्पिटल का उद्घाटन सौरभ सागर सेवा संस्थान के सौजन्य से हुआ। इस अस्पताल का उद्घाटन चार वर्ष पूर्व 20 मई 2020 को केंद्रीय राज्यमंत्री जरनल वीके सिंह एवं यूपी सरकार के कैबिनेट मंत्री नंद गोपाल गुप्ता नंदी ने किया था। इस अस्पताल के माध्यम से अब तक चार वर्ष में ढ़ाई हजार से ज्यादा दिव्यांगों को नवीनतम तकनीक के कृत्रिम अंग लगाये जा चुके हैं। पूज्य गुरुदेव के प्रेरणा से अनेक नगरों में पाठशालाओं का निर्माण, संतनिवास का निर्माण, गौशाला, प्रवचन हेतु सभागारों का निर्माण, चिकित्सालय का निर्माण, अतिथि भवन का निर्माण आदि हुए है।

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