तुग़लकाबाद क़िला,दिल्ली.
तुग़लकाबाद क़िला,दिल्ली. “हुनुज दिल्ली दूर अस्त” : यानी दिल्ली अभी दूर है.
दिल्ली के 7 ऐतिहासिक शाह में से तीसरे शाह तुग़लकाबाद का घर बनने वाला तुग़लकाबाद क़िला । आज हालाँकि इस क़िले का ज़्यादातर हिस्सा जंगल और खंडहर है लेकिन इसकी दीवारें और खंडहर इसकी भव्यता का सबूत है। अपने वक़्त किस शान व शौकत का यह क़िला था इस बात का अंदाजा लगाना काफी आसान है।
इतिहास के पन्नों को पलटें तो पता चलता है। खिलजी सल्तनत के पतन के साथ ही दिल्ली में उदय हुआ तुग़लक़ सल्तनत का। उन दिनों मंगोलों के हमले आम सी बात थी। दिल्ली पर खिलजी सलतनत के आखरी सुलतान खुसरो खान की हुकूमत थी। मंगोल हमलों के मद्दे नज़र खुसरो खान को उसके एक कमांडर ग़ाज़ी मालिक ने सलाह दी कि दिल्ली की हिफाज़त के लिए एक मज़बूत दीवारों वाला क़िला बना लेना चाहिए। खुसरो खान ने इस राय का मज़ाक उड़ाते हुए कहा कि जब खुद सुल्तान बनो तब बनवा लेना दीवारें। इतिहास ने देखा की खिलजी सल्तनत का परचम गिरा और ग़ाज़ी मलिक नाम के एक सरदार ने दिल्ली पर अपना झंडा लहराया, खुद को सुल्तान क़रार दिया ,अपना नाम ग़यासुद्दीन तुग़लक़ रखा और यूँ 1320 में तुग़लक़ सल्तनत का सूरज बुलंद हुआ। शुरूआती दौर में तो ग़यासुद्दीन तुग़लक़ ने बिजय मंडल को अपना क़िला बनाया जिसकी कहानी हमने पिछली पोस्ट में बताई है। लेकिन सलतनत क़ायम होते ही उसने इस क़िले के निर्माण को ज़्यादा एहमियत दी। ग़यासुद्दीन इस क़िले के निर्माण के लिए इतना ज़िद्दी था कि उसने दिल्ली के सभी मज़दूरों को इसी काम पर लगा दिया।
उसी वक़्त दिल्ली में दूसरी और सूफी हज़रत निजामुद्दीन औलिया अपनी ख़ानक़ाह के पास पानी की एक बावली बनवा रहे थे। सुलतान के हुक्म की वजह से मज़दूरों को वहां का काम रोक कर क़िले के काम पर जाना पड़ा। लेकिन हज़रत निजामुद्दीन की बरकत और उनसे मोहब्बत की खातिर मज़दूर डबल महनत करते थे। दिन में वह सुलतान का क़िला बनाते थे और रात को हज़रत निजामुद्दीन औलिया के यहाँ बावली का काम करते थे।
ग़यासुद्दीन उस समय बंगाल में अपनी सेना के साथ था जब उसे इस बात की खबर हुई कि मजदूर अब भी बावली का काम कर रहे हैं। शाही फरमान जारी करके सुलतान ने दिल्ली में तेल की सप्लाई रोक दी जिससे की दिए न जल सकें और रात में काम न हो सके। इस ग़ुस्ताख़ी से नाराज़ हो कर हज़रत निज़ामुद्दीन ने कहा “हुनुज दिल्ली दूर अस्त” : यानी दिल्ली अभी दूर है।
ग़यासुद्दीन बंगाल में था और उसका बेटा मोहम्मद दिल्ली में। इतिहासकारों का कहना है की मोहम्मद बिन तुग़लक़ एक सरफिरा बादशाह था। ग़यासुद्दीन बंगाल से दिल्ली के लिए चला और उत्तरप्रदेश के कारा में अपने बेटे मुहम्मद बिन तुग़लक़ से मिला। कथित तौर पर मोहम्मद बिन तुग़लक़ के कहने पर ग़यासुद्दीन जिस टेंट में आराम कर रहा था वह उस पर गिरा दिया गया और वहीँ ग़यासुद्दीन की मौत हो गयी। तुग़लकाबाद क़िले मे ही ग़यासुद्दीन का मक़बरा बना जो आज तक मौजूद्द है। यूँ ग़यासुद्दीन तुग़लक़ के लिए दिल्ली दूर हो गयी।
तुग़लकाबाद क़िला ग़यासुद्दीन का सपना था जो उसने बनाया भी। दिल्ली की हिफाज़त के लिए ऊंचो ऊंची दीवारें और एक मज़बूत क़िला जहाँ से दुशमन को मारा जा सकता है। आज क़िले की स्तिथि काफी बेकार है। माना जाता है कि शहर में कभी 52 दरवाज़े थे, जिनमें से आज केवल 13 ही बचे हैं। किलेबंद शहर में सात वर्षा जल टैंक थे। किला आकार में आधा षट्भुज है जिसका आधार 2.4 किमी (1.5 मील) है, और पूरा परिपथ लगभग 6.4 किमी (4 मील) का है।
तुगलकाबाद को तीन भागों में विभाजित किया गया है:
1- इसके दरवाज़ों के बीच एक आयताकार ग्रिड के साथ बने घरों वाला विस्तृत शहर क्षेत्र
2- बिजय -मंडल के नाम से जाने जाने वाले सबसे ऊँचे स्थान पर एक मीनार वाला गढ़ और कई हॉल और एक लंबा भूमिगत मार्ग के अवशेष
3- राजसी निवासों वाला निकटवर्ती महल क्षेत्र। मीनार के नीचे एक लंबा भूमिगत मार्ग अभी भी बना हुआ है।
आज शहर का अधिकांश हिस्सा घनी कंटीली वनस्पतियों के कारण दुर्गम है। भूतपूर्व शहर क्षेत्र का एक बढ़ता हुआ हिस्सा आधुनिक बस्तियों द्वारा कब्जा कर लिया गया है, खासकर इसकी झीलों के आसपास के क्षेत्र में।
तुगलकाबाद के दक्षिण में ग़यासुद्दीन तुगलक के मकबरे की किलेबंद चौकी के भीतर एक विशाल कृत्रिम जल भंडार था। यह अच्छी तरह से संरक्षित मकबरा एक ऊंचे मार्ग से किले से जुड़ा हुआ है जो आज भी खड़ा है।
यह थी दास्ताँ तुग़लकाबाद किले की। दास्ताँ एक सल्तनत के उदय , एक सुल्तान के अंत और एक सूफी के श्राप की।
आगे हम किस ऐतिहासिक स्मारक को कवर करें हमें कमेंट में ज़रूर बताएं।