Religious Marvels

मोठ मस्जिद,दिल्ली.

मोठ मस्जिद,दिल्ली. दिल्ली की 500 साल पुरानी मस्जिद,जिसकी कहानी एक दाल के दाने से शुरू हुई… हमारा देश कई तरह की किंवदंतियों व कहानियों के लिए मशहूर है ? उसमें भी हर एक ऐतिहासिक इमारत के बनने और बिगड़ने के पीछे की कहानी हमेशा से ही काफी दिलचस्प रहती है। इन्हीं में से एक है दाल के एक दाने से भव्य मस्जिद बनाए जाने की कहानी। ये मस्जिद साउथ एक्सटेंशन पार्ट दो में स्थित है। इस मस्जिद का निर्माण 1505 में लोदी वंश के सिकंदर लोदी (1489-1517) के शासनकाल के दौरान प्रधानमंत्री वजीर मिया भुवा द्वारा किया गया था। लोदी कालीन इस मस्जिद को मस्जिद मोठ के नाम से जाना जाता है। इसके बनने की कहानी बड़ी ही दिलचस्प तो है ही लेकिन अन्न की महत्ता को भी बताती है कि कभी सामने पड़े अनाज का तिरस्कार नहीं किया जाना चाहिए। एक बीज बोकर कई गुना बढ़ाया मस्जिद मोठ की कहानी कुछ इस तरह है कि इसे सिकंदर लोदी के वजीर मियां भुवा ने तैयार करवाया था। कहते हैं कि वह सिकंदर लोदी के साथ प्रार्थना करने के लिए नजदीक ही बनी एक मस्जिद में आया था। यहां घुटने टेकने के दौरान उसने देखा कि एक पक्षी की चोंच से मसूर के बीज का एक दाना गिर गया है।उन्हें लगा कि इस दाने को व्यर्थ करने की बजाय अल्लाह की सेवा में लगाया जाना चाहिए। तब उन्होंने इस बीज को अपने बगीचे में बो दिया। कई वर्षों तक उस बीज से उगने वाले पौधे से मिलने वाले बीजों को लगातार बोया गया, जिससे वह कई गुना बढ़ गया। वजीर ने अंत में फसल को बेचकर पैसा कमाया और सुल्तान की अनुमति से उससे साल 1505 में मस्जिद का निर्माण करवाया। यही वजह है कि इस मस्जिद का नाम मस्जिद मोठ रखा गया। मस्जिद की वास्तुकला मस्जिद मोठ को बलुआ पत्थर के एक ऊंचे चबूतरे पर बनाया गया है। इस मस्जिद का लेआऊट पूरी तरह चौकोर है। यहां आपको मेहराबों के डिजाइन में मुगल व हिंदू कला का बेजोड़ नमूना देखने को मिलेगा। प्रवेश द्वार की सीढ़ियों के ऊपर 38.6 मीटर चौड़ाई का एक बड़ा प्रांगण है। आंगन के भीतर पश्चिम तरफ मुख्य मस्जिद है। इसमें आयताकार प्रार्थना हॉल है।2 मंजिला इस मस्जिद में अष्टकोणीय छतरियां हैं। पश्चिम की ओर बुर्ज है। मस्जिद में 3 गुंबद हैं। बीच का गुंबद सबसे बड़ा है। मेहराब ईरानी डिजाइन में लोरा नक्काशी में बनाए गए हैं, जिनमें कुरान की आयतें लिखीं हुई हैं। सफेद संगमरमर से पैनल बनाए गए हैं साथ मस्जिद की दीवारों पर रंग-बिरंगी टाइलें भी देखने को मिलती हैं। अभी भी शुक्रवार को पढ़ी जाती है नमाज कई ऐतिहासिक मस्जिदों में हाल ही में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा रोक लगाई गई है क्योंकि लोग दीवारों पर लिखकर चले जाते हैं और इमारत को कई प्रकार से नुकसान भी पहुंचाते हैं लेकिन मस्जिद मोठ एक ऐसी मस्जिद है जहां आज भी हर शुक्रवार को जुम्मे की नमाज पढ़ी जाती है। इस दौरान बड़ी संख्या में लोग इबादत करने के लिए अगल-बगल के इलाकों से भी पहुंचते हैं। विशेष त्यौेहारों के मौकों, जैसे ईद व बकरीद पर यहां नमाजियों की संख्या में काफी इजाफा हो जाता है। मस्जिद मोठ के नाम पर है इलाके का नाम इतिहासकारों का कहना है कि सिर्फ मस्जिद मोठ ही नहीं, बल्कि इस जगह पर कृषि की जाती थी और मस्जिद बनने के बाद अगल-बगल गांव बसाए गए। उस गांव का नाम भी मस्जिद मोठ गांव पड़ा। हालांकि शहरीकरण के चलते अब इस गांव का नाम कहीं पर भी नहीं बचा। फिलहाल मस्जिद मोठ के संरक्षण का कार्य भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के दिल्ली सर्कल द्वारा किया जा रहा है लेकिन अतिक्रमण के चलते मस्जिद अपनी रंगत और शान को खोती चली जा रही है। सिकंदर लोदी ने रखी थी मस्जिद की नींव वजीर मियां भुवा ने मस्जिद का निर्माण करवाने की बात सुल्तान सिकंदर लोदी को बताई तो वजीर की चतुराई और अनाज बचाने की ललक से वह इतना प्रभावित हुआ कि इस मस्जिद के निर्माण की नींव रखने के लिए खुद आया था। वैसे यह भी कहते हैं कि सिकंदर लोदी ने मजाक में अपने वजीर को मसूर का एक दाना तोहफे में दिया था। जिसे उसने अपने बगीचे में लगाकर मस्जिद मोठ का निर्माण किया था। वैसे इस बात में कितनी हकीकत है यह कहना बेमानी है लेकिन आज भी महरौली इलाके में रहने वाले लोग इसी कहानी को सुनाया करते हैं। Moth ki Mosque,delhi. Moth ki Mosque is a heritage building located in Delhi, and was built in 1505 by Wazir Miya Bhoiya, Prime Ministerduring the reign of Sikander Lodi (1489–1517) of the Lodi dynasty. It was a new type of mosque developed by the Lodis in the fourth city of the medieval Delhi of the Delhi Sultanate.The name of the mosque literally translated into English language means ‘Lentil Mosque’ and this name tag ‘Lentil’ has an interesting legend. This mosque was considered a beautiful Dome (Gumbad) structure of the period. It is famously narrated that when SultanSikandar Lodi was on a visit to a mosque in the vicinity of the present location of the Moth Ki Masjid for prayer, he knelt over a grain of moth (a kind of lentil), which had been dropped by a bird. His loyal Prime Minister Wazir Miya Bhoiya, who had accompanied the King, saw the lentil seed and observed that A seed so honoured by His majesty must not be thrown away. It must be used in the service of God. So he took the moth seed and planted it in his garden for further growth. Over the years, the process of repeated planting and replanting of the moth seeds was carried out. In this process, the seeds multiplied several times. The Wazir finally sold the rich harvest and earned good money. With the proceeds of the sale he built the mosque after seeking permission from the Sultan to construct the Mosque. Impressed by the ingenuity of his minister, Sikandar Lodi laid the foundation for building the mosque. Another version of the legend is that Sikandar Lodhi on one of his visits to the area played a prank on his Prime Minister by giving him a gift of a grain of moth (lentil). The Wazir accepted the gift in good grace and instead of throwing it away planted it in his garden. Over the years repeated plantation resulted in a rich harvest that provided a surplus income to the Wazir. Thereafter, the wazir, with the revenue earned from the lentil grains, decided to build a mosque. On completion, he invited the Sultan to visit the mosque and narrated the sequence of events which led to the building of the mosque. Impressed by this unique achievement, the Lodi named the mosque as "Moth Ki Masjid" or the Mosque from the Moth Lentil.

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