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आइए जानते हैं अक्षय तृतीया पर्व का जैन पंथ में क्या महत्व है.

आइए जानते हैं अक्षय तृतीया पर्व का जैन पंथ में क्या महत्व है. जैन समुदाय में भी अक्षय तृतीया पर्व विशेष महत्व रखता है। इस दिन जैन समुदाय के लोग भी उपवास रखते हैं। जैन धर्म की मान्यता के अनुसार, भगवान ऋषभनाथ (प्रथम तीर्थंकर) ने एक वर्ष की तपस्या करने के बाद वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि अर्थात अक्षय तृतीया के दिन इक्षु रस (गन्ने का रस) से अपनी तपस्या का पारण किया था। इस कारण जैन समुदाय में यह दिन विशेष माना जाता है। जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभनाथ का जन्म चैत्र कृष्ण की नवमी तिथि के दिन हुआ था। उन्हें भगवान आदिनाथ के नाम से भी जाना जाता है। उन्होंने अपने सांसारिक जीवन में वर्षों तक सुखपूर्वक राज्य किया। फिर अपने पांच पुत्रों के बीच राज्य का बंटवारा कर वे सांसारिक जीवन को त्यागकर दिगंबर तपस्वी बन गए। वर्षों तक भूखे रहकर तपस्या उन्होंने कैवल्य प्राप्त करने के लिए एक वर्षों तक भूखे रहकर तपस्या की। इस तपस्या के दौरान हस्तिनापुर में उनके पौत्र हस्तिनापुर के राजा श्रेयांश ने उन्हें गन्ने का रस भेंट किया और इसे पीकर उन्होंने अपनी तपस्या को समाप्त किया। कैवल्य प्राप्त करने के बाद वे जिनेन्द्र बन गए। पारण उत्सव इसी मान्यता को लेकर हस्तिनापुर में आज भी अक्षय तृतीया का उपवास गन्ने के रस से तोड़ा जाता है। यहां इस उत्सव को पारण के नाम से जाना जाता है।

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