Religious Marvels

क्या आपको मालूम है कि अपने मेरठ कि शाही ईदगाह जैसी दूसरी शाही ईदगाह पूरे उत्तरी भारत मे नहीं है, जिसमें ईटों पर आयतें लिखी हों, वह भी अरबी भाषा में। शाही ईदगाह,मेरठ.

क्या आपको मालूम है कि अपने मेरठ कि शाही ईदगाह जैसी दूसरी शाही ईदगाह पूरे उत्तरी भारत मे नहीं है, जिसमें ईटों पर आयतें लिखी हों, वह भी अरबी भाषा में। शाही ईदगाह,मेरठ. 1857 की क्रांति की शुरूआत वाले मेरठ जिले में जर्रे-जर्रे में इतिहास बसा हुआ है। इतिहास चाहे महाभारत काल का हो या फिर रामायण काल का। यहां पर कौरव-पांडवों की यादों से जुड़ा हस्तिनापुर है तो रावण की ससुराल और उनकी पत्नी मंदोदरी का मायका भी। यहां पर बेगम समरू का मकबरा है तो शाही ईदगाह भी है। जो अपने आप में एक इतिहास है। इतिहास भी ऐसा कि पूरे उत्तरी भारत में तो ऐसी ईदगाह कहीं है भी नहीं। पूरे उत्तरी भारत में ऐसी शाही ईदगाह नहीं है, जिसमें ईटों पर आयतें लिखी हों, वह भी अरबी भाषा में। 800 साल पुरानी है मेरठ की ईदगाह मेरठ में दिल्ली रोड स्थित शाही ईदगाह करीब 800 साल पुरानी है। इसका निर्माण 1210 ईसवीं के बीच उस समय दिल्ली की सल्तनत पर काबिज कुतबुद्दीन ऐबक ने कराया था। उस समय कुतबुद्दीन कई बार यहां पर ईद की नमाज पढ़ने के लिए आया था। जानकारों के अनुसार बादशाह घोडे़ पर दिल्ली से नमाज पढ़ने आता था। उसके साथ पूरा लावलश्कर होता था। नमाज पढ़ने के बाद यहां पर बड़ी-बड़ी ढेंग चढ़ार्इ जाती थी और उसमें गरीबों के लिए भोजन बनाया जाता था, जो शहर और आसपास के क्षेत्रों में बांटा जाता था। एक साथ बिछती हैं 131 सफे शाही ईदगाह भीतर से इतनी विशाल है कि इसके भीतर 131 सफे एक साथ बिछाई जाती है। जिसमें करीब 60 हजार अकीदतमंद एक साथ नमाज अदा करते हैं। ईदगाह की एक और खासियत यह है कि इसका निर्माण के दौरान जमीन के भीतर इसकी कोई बुनियाद नहीं रखी गई। ईदगाह को सीधे बिना बुनियाद के ही बनाया गया है। ईदगाह के निर्माण में मिट्टी और चूने के मिश्रण का प्रयोग किया गया। पूरी ईदगाह मिट्टी की चिनाई से बनाई गई है। ईटों पर अरबी में लिखी है इबारत मेरठ में दिल्ली रोड स्थित इस ईदगाह की सबसे अहम और अलग खासियत यह है कि इसके निर्माण में जिन ईंटों का प्रयोग किया गया है उनमें अरबी की इबारत लिखी है। एक-एक शब्द को अलग-अलग फरमे में ढालकर उसे अच्छी तरह से पकाकर उसे जोड़कर बनाया गया। ईदगाह की ऊपर देखने पर पता चलता है कि इसकी शुरूआत कुरान की पहली आयत बिसमिल्लाह हिर रेहमान निर्राहीम,से की गई। इतिहासकारों का कहना है कि पूरे हिन्दुस्तान में जितनी भी ईदगाह हैं उनमें अगर किसी में ईंटों पर इबारत लिखी हुई है तो वह सिर्फ मेरठ के शाही ईदगाह में ही है।

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