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MAA CHINTPURNI TEMPLE ,UNA,HP मां चिंतपूर्णी देवी का मन्दिर, चिन्तपूर्णी जी,ऊना,हिमाचल प्रदेश.

मां चिंतपूर्णी देवी का मन्दिर, चिन्तपूर्णी जी,ऊना,हिमाचल प्रदेश. चिन्तपूर्णी अर्थात चिन्ता को दूर करने वाली देवी जिसे छिन्नमस्तिका भी कहा जाता है। छिन्नमस्तिका का अर्थ है-एक देवी जो बिना सर के है। कहा जाता है कि यहां पर पार्वती माता के पवित्र पांव गिरे थे। चिंतपूर्णी देवी मंदिर का इतिहास उस समय का है, जब देवताओं को पराजित करने के बाद स्वर्ग पर असुरों का राज था। मां चिंतपूर्णी देवी का यह मंदिर हिमाचल प्रदेश के उना जिले में स्थित है, जिसे 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। मां चिंतपूर्णी देवी का इतिहास क्या है ? पौराणिक मान्यताओं के अनुसार एक बार देवताओं और असुरों के बीच युद्ध प्रारंभ हुआ, जो खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा था। कहा जाता है कि यह युद्ध 100 वर्षों तक चला, जिसमें देवता लोग पराजित हो गए। पराजित होने के बाद सभी देवी-देवता धरती पर आकर साधारण मनुष्य की तरह विचरण करने लगे और स्वर्ग पर असुरराज महिषासुर राज करने लगा। कुछ समय बाद असुरों ने सभी देवी-देवताओं के पर अत्याचार करना शुरू कर दिया, जिसके बाद तंग आकर सभी देवी-देवता भगवान विष्णु के शरण में पहुंचे और उनसे असुरों से रक्षा करने की विनती करने लगे। तभी भगवान विष्णु ने ब्रह्मा और महेश यानी देवों के देव महादेव को आह्वान किया। तत्पश्चात वे दोनों भी यहां आ पहुंचे। इस घटना को सुनने के बाद त्रिदेव अर्थात ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों के शरीर से एक दिव्य प्रकाश प्रकट हुआ, जो देखते ही देखते एक देवी का रूप धारण कर लिया। त्रिदेव ने अन्य सभी देवी-देवताओं के भांति उस देवी को भी कुछ न कुछ दिव्य शक्तियां प्रदान किए। शक्तियां प्रदान करने के बाद सभी देवी-देवता गण मिलकर उस देवी की अराधना की। उनकी अराधना से प्रसन्न होकर देवी ने कहा कि मैं आप सभी देवी-देवताओं की रक्षा अवश्य करूंगी। इतना कहकर देवी महिषासुर से युद्ध करने के लिए स्वर्ग की ओर निकल पड़ीं। स्वर्ग में पहुंचने के बाद देवी ने असुरराज महिसासुर से युद्ध आरंभ कर दिया और अंत में महिषासुर को पराजित करके देवताओं को असुरों से रक्षा कर दिया। महिषासुर का वध करने के बाद इन्हें महिषासुर मर्दनी के नाम से जाना जाने लगा। चूंकि महिषासुर मर्दनी ने सभी देवी-देवताओं के चिंता को दूर किया था, इसीलिए सभी देवी-देवता लोग इन्हें देवी चिंतपूर्णी के नाम से संबोधित कर इनका जय-जयकार करने लगे। माता चिंतपूर्णी देवी 51 शक्तिपीठों में से एक है। यहां पर माता सती के चरण गिरे थे, इसलिए यहां पर माता चिंतपूर्णी देवी की पूजा चरण के रूप में की जाती है। मां चिंतपूर्णी देवी मंदिर का इतिहास क्या है ? पौराणिक कथाओं के अनुसार कहा जाता है कि गरीबी से परेशान होकर एक बार एक पंडित अपने ससुराल जा रहे थे। रास्ते में ही अंधेरा हो जाने के बाद वे एक बरगद के पेड़ के नीचे विश्राम करने लगे। तभी सपने में एक छोटी बालिका के रूप में माता ने उस पंडित को दर्शन दिए। नींद खुलने के बाद उस पंडित को कुछ भी नहीं दिखा, इसलिए वे सुबह अपने ससुराल की ओर निकल पड़े। ससुराल से लौटते वक्त पंडित ने उसी बरगद के पेड़ के नीचे रात में विश्राम करने का निर्णय लिया। बरगद के पेड़ के पास पहुंचने के बाद पंडित ने ध्यान लगाना शुरू किया। फलस्वरूप माता ने उस पंडित को अपने चतुर्थ रूप में दर्शन दिया और कहा कि मैं इस बरगद के वृक्ष के नीचे वास करूंगी। और साथ में यह भी कहा कि इस बरगद के वृक्ष के पास स्थित पत्थरों के नीचे-नीचे एक नदी का जल बहता है। पंडित ने सुबह जब पत्थर हटाया, तो वहां पर एक नदी का जल मिला, जिससे आज भी माता चिंतपूर्णी देवी का जलाभिषेक किया जाता है। Maa Chintpurni Temple



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